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सलवा जुडूम का दर्द : दो साल का मानदेय मिला और न आरक्षक की नौकरी

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दंतेवाड़ा। नक्सलियों के खिलाफ जनजागरण आंदोलन में शामिल होने के बाद एसपीओ बनकर समाज सेवा में जुटे। नक्सलियों की तलाश में जंगल भी भटके और कुछ मुठभेड़ में भी हिस्सा लिया लेकिन आज फाके की जिंदगी जीने मजबूर हैं। सरकार ने फंड नहीं होने की बात कहते एसपीओ की सेवा से अलग किया। फिर सहायक आरक्षक की भर्ती में बुलाया पर मापदंड का डंडा चलाकर प्रक्रिया से बाहर कर दिया। अब दो साल मुफसिली की जिंदगी जी हैं। सरकार बंदूक की नौकरी न सही पर परिवार चलाने के लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ कर दें।

यह बातें आज सर्किट हाउस में बीजापुर जिले से आधा एक दर्जन महिला-पुरुष ग्रामीणों ने मीडिया के समक्ष कहा। समाज सेवी और आप पार्टी की नेत्री सोनी सोरी तथा सुकुलधर नाग के साथ पहुंचे युवक-युवतियों ने मीडिया के सामने अपना दर्द बयां किया। युवक-युवतियों के माने वे नक्सलियों के खिलाफ में जन जागरण अभियान में हिस्सा लिया था।

इसके बाद उन्हें सलवा जुडूम कैंप और फिर दंतेवाड़ा के कारली कैंप में लाया गया। जहां प्रशिक्षण के बाद वर्ष 2005 में विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रुप में बीजापुर ले जाकर फोर्स के साथ सर्चिंग से लेकर आपरेशन और अन्य ड्यूटी ली गई। जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया तब भी वे अपने कर्तव्य पर थे। लेकिन मार्च 2016 में फंड नहीं होने की बात कहते अधिकारियों ने कार्य से अलग कर दिया।

इसके बाद वे जिला बल और एसटीपीएफ और हाल में सीआरपीएफ की भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुए पर मापदंड में बाहर कर दिए गए। युवक-युवतियों का कहना है कि उन्हें 2014 से मार्च 2016 के बीच करीब दो साल का मानदेय भी अब तक नहीं मिला है। भर्ती और अन्य शिकायत लेकर जब थाने और दफ्तर जाते हैं तो बाहर ही रोक दिया जाता है। अधिकारियों से मिलने तक नहीं देते। निकाले गए एसपीओ का कहना है कि उनकी जगह अधिकारियों ने मिलीभगत करते अन्य लोगों को नौकरी दे दी है।

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