खेत, जंगलों में महुआ संग्रहण में जुटे ग्रामीण

महासमुंद। ‘ पीला सोना ’कहे जाने वाले महुआ की महक से इन दिनों पूरा वन महकने लगा है। गर्मी शुरू होने के साथ ही पेड़ों से महुआ गिरना शुरू हो गया है।
क्षेत्र के ग्रामीण अपने परिवार के साथ इन दिनों जंगल, खेत, टिकरा में महुआ बीनने में जुटे हैं। ग्रामीण सुबह 5 बजे से ही महुआ बीनने खेत, जंगल पहुंच रहे हैं। बता दें कि नगदी के रूप में माना जाने वाला महुआ गिरने का इंतजार ग्रामीण बेसब्री से करते हैं। महुआ बेचकर ग्रामीण अनेक जरूरी कार्य निपटाते हैं। पिछले वर्ष मार्च शुरूआत में 30 से 35 रूपए प्रति किलो की दर से बिक्री शुरू हुई और अंतिम समय में 45 रूपए तक महुआ बिका था। इस वर्ष शुरूआती समय में महुआ 40 से 42 रुपए बिक रहा है। हालांकि संपन्न ग्रामीण उस सीजन में बिक्री न कर अच्छी कीमत मिलने तक इंतजार करते हैं। इस वर्ष महुआ की फसल अच्छी दिखाई दे रही है। इन दिनों ग्रामीणों में ज्यादा महुआ बीनने की होड़ मची हुई है। वनांचल क्षेत्रों में महुआ ग्रामीणों के जीविकोपार्जन का बड़ा जरिया है। छत्तीसगढ़ सरकार भी लघु वनोपज खरीदी के अंतर्गत महुआ फूल और बीज की खरीदी करती है। महुआ बीन रहे ग्रामीणों का कहना है कि 4 से 6 क्विंटल सूखा महुआ हर साल मिल जाता है, जिसे 40 से 42 रुपए प्रति किलो की दर से व्यापारी खरीद लेते हैं, हमारी यह खेती पूरी तरह से प्राकृतिक और बिना लागत वाली है। क्षेत्र में मार्च में पेड़ से महुआ कम ही मिलता है पर अधिकांश पेड़ों से अप्रैल माह से महुआ मिलना शुरू हो जाता है।