भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य की परंपरा सदियों पुरानी: अनुसुइया

विविध विध योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी हुई
महासमुंद। गुरु पूर्णिमा पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन के तत्वावधान में भारतीय संस्कृति में गुरु- शिष्य परंपरा: विविधविध योगदान विषय पर अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें स्वामी आत्मानंद शासकीय अंग्रेजी माध्यम आदर्श महाविद्यालय प्राचार्य डॉ अनुसुइया अग्रवाल शामिल हुई।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि नॉर्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक एवं अध्यक्ष बृज किशोर शर्मा पूर्व शिक्षा अधिकारी थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला इकाई के रूप में डॉ अनुसुइया अग्रवाल ने कहा कि गुरु का सम्मान आज कम हो चला है। आजकल विद्यार्थी शिक्षक से कटकर रहते हैं। उन्हें काम से मतलब है। अध्ययन वर्षों की समाप्ति यानी डिग्री प्राप्ति के पश्चात विद्यार्थी अपने गुरुओं से कोई वास्ता नहीं रखते जो गलत है। गुरु के महत्व को आज नई पीढ़ी तक पहुंचाना अति आवश्यक है। गुरु ही मूल्यों को गढ़ता है, संस्थान महत्वपूर्ण नहीं होते। असल महत्व जीवित गुरु का होता है। गुरु अपने व्यक्तित्व, ज्ञान, कला कौशल और प्रेरणा से विद्यार्थियों को कुछ न कुछ सिखाते हैं। आगे उन्होंने कहा कि गुरुओं में ज्ञान केंद्रीय तत्व है, विद्यार्थी गुरुओं की उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। एक विद्यार्थी गुरुओं के द्वारा दिए गए संस्कारों का श्रेष्ठ संवाहक हो सकता है।
मुख्य अतिथि शुक्ल ने कहा कि, वेद और गुरु ग्रंथ साहिब भी गुरु हैं। गुरु ही अपने शिष्यों को मानव से महामानव बनता है तथा सभी लोगों की प्रथम गुरु मां होती है। समारोह के अध्यक्षीय भाषण की अभिव्यक्ति में बृज किशोर शर्मा ने कहा कि युवाओं के आक्रोश, मीडिया के अवमूल्यन आदि समस्याओं के निवारण के साथ सही शिक्षा और आदर्श समाज हेतु सही गुरु की आवश्यकता है। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा गंगा नदी के प्रवाह की तरह प्राचीन और अविरल है। वैदिक साहित्य से लेकर आधुनिक चिंतन तक, गुरु शिष्य परम्परा सभी अन्वेषण और परीक्षण के केंद्र में रही है। डॉ. शहनाज शेख महासचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा कि गुरु ही अनुशासन और नम्रता ला सकता है। डॉ. दक्षा जोशी गुजरात राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा मानव जीवन का उद्देश्य आत्मा को जानना है। जितने भी महानायक हुए हैं उनके गुरु के पथ प्रदर्शन से ही हुए हैं। जिसमें शिवा के गुरु समर्थ रामदास, चंद्रगुप्त के गुरु चाणक्य, गुरु वशिष्ठ, गुरु वाल्मीकि, सांदीपनि आदि का अपने शिष्यों को मानव से महामानव बनाया। आपने कहा कि जीवन में गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है। सरोज दवे ने कहा, सत्य मार्ग पर ले जाते हैं गुरु। विशिष्ट वक्ता डॉ प्रभु चौधरी , उज्जैन कोषाध्यक्ष ने सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। युगपुरुष वेद मूर्ति तपोनिष्ठ विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार व्यक्त किया। राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ हरिसिंह पाल ने कहा, गुरु के प्रति समर्पण होना चाहिए और श्रद्धा रखनी चाहिए। राष्ट्रीय संयोजक पदमचंद गांधी ने कहा, गुरु भगवान के समान है। गुरु शिष्य की सारी परेशानियों को अपने ऊपर ले लेता है।
संचालक डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद मुख्य ने संचालन करते हुए कहा, हमारे इतिहास में गुरु विश्वामित्र, गुरु सांदीपनि, वशिष्ठ, गुरु नानक, गुरु गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, सावित्रीबाई फुले, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, राजा राममोहन राय जैसे गुरु हुए हैं। उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए देश और समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास किया है। कार्यक्रम समाप्ति पर शहनाज शेख नांदेड़, महाराष्ट्र ने आभार व्यक्त किया।