केजव्हील ट्रैक्टर से सड़क को नुकसान से बचाने देशी जुगाड़ से बनाई ट्राली

किसान निलेश डडसेना ने एक सरल, किफायती और प्रभावी समाधान निकाला
महासमुंद। जिले में मानसून के आगमन के साथ ही खेतों में कृषि कार्य जोर पकड़ता जा रहा है। बारिश से खेतों में पानी भरने के साथ ही खेत को तैयार करने का काम तेजी से हो रहा है, जिसमें डबल केजव्हील ट्रैक्टर का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इस बीच, सरायपाली के बोंदा गांव के एक प्रगतिशील किसान निलेश डडसेना ने अपनी सूझबूझ और देसी जुगाड़ से एक ऐसी ट्राली बनाई है, जो न केवल सड़कों को डबल केजव्हील ट्रैक्टर से होने वाले नुकसान से बचा रही है, बल्कि शासन के नियमों का पालन करने में भी सहायक सिद्ध हो रही है। इस अनोखे जुगाड़ ने निलेश को क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना दिया है।
मानसून सक्रिय होते ही खेतों में पानी लगते ही खेतों की रोपाई,लईहारा बुआई के लिए डबल केजव्हील ट्रैक्टर का उपयोग आम बात है। यह ट्रैक्टर खेतों को समतल करने और मिट्टी को तैयार करने में अत्यंत उपयोगी होता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बोरवेल्स के आसपास खेतों में पानी भरा होता है। हालांकि, डबल केजव्हील ट्रैक्टर का उपयोग पक्की सड़कों पर करने से सड़कें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिसके कारण शासन ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है। इस नियम का पालन करते हुए निलेश डडसेना ने एक सरल, किफायती और प्रभावी समाधान निकाला है, जो न केवल उनके लिए, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी वरदान साबित हो रहा है।
निलेश ने अपने डबल केजव्हील ट्रैक्टर को घर से खेत तक ले जाने के लिए एक विशेष ट्राली का निर्माण किया है। इस ट्राली को दो टायरों के साथ डिजाइन किया गया है, जिस पर ट्रैक्टर को आसानी से लोड किया जा सकता है। इस ट्राली की मदद से डबल केजव्हील ट्रैक्टर को सड़क पर बिना चलाए, एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है। इससे सड़कों को नुकसान होने का खतरा पूरी तरह समाप्त हो जाता है। साथ ही, यह ट्राली शासन के नियमों का पालन करने में भी मदद करती है, जिससे किसान बिना किसी कानूनी अड़चन के अपने कार्य को अंजाम दे सकते हैं। निलेश का यह देसी जुगाड़ न केवल किफायती है, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक संपत्ति के संरक्षण के प्रति उनकी जागरूकता को भी दर्शाता है। इस ट्राली को बनाने में स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया गया है, जिससे लागत कम रही है और इसे आसानी से अन्य किसान भी बनवा सकते हैं। निलेश के इस नवाचार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह ट्रैक्टर को खेत तक ले जाने में सुविधाजनक होने के साथ-साथ समय और श्रम की भी बचत करता है।
निलेश का यह जुगाड़ चर्चा का विषय बना हुआ है। कई किसान अब इस तकनीक को अपनाने की योजना बना रहे हैं। क्षेत्र के एक अन्य किसान ने बताया, “निलेश का यह आविष्कार वाकई काबिल-ए-तारीफ है। पहले हमें डबल केजव्हील ट्रैक्टर को सड़क पर चलाने में डर लगता था, क्योंकि सड़क खराब होने के साथ-साथ शासन के नियमों का उल्लंघन भी होता था। लेकिन अब इस ट्राली के जरिए हम आसानी से ट्रैक्टर को खेत तक ले जा सकते हैं।”
कृषि विभाग से जुड़े अधिकारियों ने कहा, “यह एक शानदार उदाहरण है कि कैसे स्थानीय स्तर पर नवाचार किसानों की समस्याओं का समाधान कर सकता है। निलेश का यह जुगाड़ न केवल सड़कों को सुरक्षित रखता है, बल्कि किसानों को शासन के नियमों का पालन करने में भी मदद करता है। हम अन्य किसानों को भी इस तरह के नवाचार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।”निलेश डडसेना का यह प्रयास ग्रामीण भारत में नवाचार और आत्मनिर्भरता का एक जीवंत उदाहरण है। उनके इस जुगाड़ ने न केवल उनकी अपनी समस्या का समाधान किया, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी एक नया रास्ता दिखाया है। यह छोटा सा आविष्कार यह दर्शाता है कि किसान न केवल मेहनती होते हैं, बल्कि अपनी बुद्धिमत्ता और रचनात्मकता से समाज के लिए नए समाधान भी प्रस्तुत कर सकते हैं।
इसके साथ ही, निलेश का यह प्रयास शासन के नियमों के प्रति उनकी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है। सड़कों को सुरक्षित रखने और खेती के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए उनका यह जुगाड़ एक मिसाल बन गया है। अन्य किसानों को भी इस तरह के नवाचारों को अपनाने की जरूरत है, ताकि वे न केवल अपनी खेती को बेहतर बना सकें, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक संपत्ति के संरक्षण में भी योगदान दे सकें।
निलेश डडसेना का यह छोटा सा प्रयास यह साबित करता है कि देसी जुगाड़ और स्थानीय नवाचार किसानों की जिंदगी को आसान बनाने के साथ-साथ समाज के लिए भी लाभकारी हो सकते हैं। उनके इस कार्य ने न केवल बोंदा गांव, बल्कि पूरे सरायपाली क्षेत्र में एक नई प्रेरणा जगा दी है। उम्मीद है कि भविष्य में और भी किसान इस तरह के रचनात्मक समाधानों को अपनाएंगे, जिससे खेती और पर्यावरण दोनों का संतुलन बना रहे।