प्रधानमंत्री सूर्यघर मुफ्त बिजली योजनाः उजाले से उपजता आत्मविश्वास

बिजली नहीं, उम्मीदें पैदा कर रहा सूरज, कोरबा के घरों में उजाले से आई समृद्धि
कोरबा 13 अक्टूबर, 2025/ भारत आज ऊर्जा के क्षेत्र में एक ऐसी क्रांति का नेतृत्व कर रहा है, जो न केवल वर्तमान की जरूरतों को पूरा कर रही है, बल्कि आने वाले दशकों के लिए एक स्थायी और स्वच्छ भविष्य की नींव भी रख रही है। हरित ऊर्जा और आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाए गए ठोस कदम अब केवल नीतियों की पंक्तियों में नहीं, बल्कि आम नागरिकों के जीवन में चमकते उजालों में दिखाई दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आरंभ की गई “प्रधानमंत्री सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना” इसी परिवर्तन की एक अद्भुत मिसाल है। यह योजना भारत के हर नागरिक को सूरज की असीम ऊर्जा से जोड़कर एक ऐसा भविष्य गढ़ रही है, जहाँ हर घर ऊर्जा का उत्पादक बने और हर नागरिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक। इस योजना का मूल विचार सरल, परंतु अत्यंत प्रभावशाली है हर घर की छत पर सौर ऊर्जा, हर परिवार में बचत और स्वावलंबन।
भारत जैसे सूर्य-प्रधान देश में जहाँ वर्षभर पर्याप्त धूप उपलब्ध रहती है, वहाँ सौर ऊर्जा केवल विकल्प नहीं, बल्कि अवसर है। इस अवसर को साकार रूप देने के लिए भारत सरकार ने सशक्त तकनीकी, वित्तीय सहायता और पारदर्शी प्रक्रिया का समावेश किया है। प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना के अंतर्गत नागरिकों को अपनी छत पर सोलर पैनल लगाने के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी दी जा रही है। इससे न केवल बिजली की आवश्यकताएँ पूर्ण हो रही हैं, बल्कि अतिरिक्त बिजली ग्रिड में भेजकर आमदनी का भी रास्ता खुल रहा है। योजना का यह स्वरूप नागरिकों को उपभोक्ता से उत्पादक की भूमिका में लाता है। यह बदलाव न केवल व्यक्तिगत स्तर पर राहत देता है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। आज भारत के अनेक शहरों और गांवों में यह योजना लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुकी है। कोरबा जैसे औद्योगिक क्षेत्र में, जहाँ पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की पहचान रही है, अब सूरज की रोशनी ने स्वच्छ और हरित ऊर्जा का नया अध्याय रच दिया है। यहाँ के नागरिक न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त बन रहे हैं।
कोरबा जिले के दो परिवारों आयुष अग्रवाल और अजय राज बेन की कहानियाँ इस योजना की सफलता को जीवंत रूप से दर्शाती हैं। दोनों की परिस्थितियाँ भले ही अलग रही हों, लेकिन दोनों ने सूरज की शक्ति से अपनी दुनिया को नया उजाला दिया है।
आयुष अग्रवाल कोरबा के डीडीएम रोड पर रहते हैं। उनका संयुक्त परिवार है, जहाँ आधुनिक घरेलू उपकरणों की जरूरतें अधिक हैं। पहले उन्हें हर महीने बिजली के बढ़ते खर्च को लेकर चिंता रहती थी। फिर उन्हें प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना की जानकारी मिली, और उन्होंने इस अवसर को अपनाने का निर्णय लिया। आवेदन की प्रक्रिया पूरी तरह सरल और पारदर्शी रही। जिला प्रशासन और ऊर्जा विभाग के मार्गदर्शन से कुछ ही समय में उनके घर की छत पर सोलर पैनल लग गए। आज उनके घर में सूरज की रोशनी से चलने वाले पंखे, कूलर, फ्रिज और ए.सी. सब सहजता से काम कर रहे हैं। अब बिजली बिल लगभग आधा हो गया है और वही पैसा बचत के रूप में परिवार की आर्थिक स्थिरता को बढ़ा रहा है। अग्रवाल ने कहा अब हमें सूरज की हर किरण में बचत नजर आती है। हर महीने की चिंता अब गर्व में बदल गई है। वे बताते हैं कि योजना की प्रक्रिया आसान थी और सरकार की ओर से मिली तकनीकी सहायता ने पूरे अनुभव को भरोसेमंद बनाया। आज उनका परिवार पूरी तरह सौर ऊर्जा पर निर्भर है और पर्यावरण संरक्षण में भी सक्रिय योगदान दे रहा है। वहीं, दूसरी ओर दादरखुर्द के निवासी अजय राज बेन की कहानी भी उतनी ही प्रेरक है। भारतीय वायुसेना में देश सेवा के बाद उन्होंने जीवन के नए चरण में समाज को कुछ लौटाने का निश्चय किया। वर्ष 2024 में जब उन्होंने अखबार में प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना के बारे में पढ़ा, तो तुरंत इस दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने घर की छत पर 3 किलोवाट का सोलर पैनल स्थापित कराया, सरकार से मिली सब्सिडी और त्वरित प्रक्रिया ने स्थापना को सहज बना दिया। अब उनका घर पूरी तरह स्वच्छ ऊर्जा से संचालित है। बेन ने कहा उनके घर में बिजली निर्बाध है और अतिरिक्त ऊर्जा ग्रिड में भेजी जाती है। उनकी सफलता ने आसपास के लोगों को भी प्रेरित किया है। पड़ोसी और रिश्तेदार अब सौर ऊर्जा अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं। यह योजना न केवल तकनीकी दृष्टि से सशक्त है, बल्कि जनजागरूकता का भी प्रतीक बन चुकी है।
प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना ने यह सिद्ध कर दिया है कि सच्चा विकास वही है जो नागरिकों को सशक्त बनाते हुए पर्यावरण को भी सुरक्षित रखे। यह योजना केवल बिजली की व्यवस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन है जो हर व्यक्ति को ऊर्जा उत्पादक बनाकर राष्ट्र की प्रगति में भागीदार बना रही है। कोरबा के अनेक परिवार इस परिवर्तन के प्रतीक हैं। उनकी कहानियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि जब नीति, तकनीक और नागरिक भागीदारी एक साथ आती है, तो विकास केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि मुस्कुराते चेहरों में दिखाई देता है। भारत सरकार की यह पहल अब ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक जनांदोलन बन चुकी है। भारत हरित ऊर्जा के वैश्विक मानचित्र पर अपनी पहचान बना चुका है। नागरिकों को यह भरोसा दिया है कि भविष्य केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि नागरिकों की भागीदारी से बनता है। और जब नागरिक ही ऊर्जा के निर्माता बन जाएँ तब वास्तव में आत्मनिर्भर भारत का सपना सच होता है।