शरद पूर्णिमा पर आस्था की हुई काव्य गोष्ठी
महासमुंद। शरद पूर्णिमा पर आस्था साहित्य समिति महासमुंद द्वारा साहित्यकार डॉ. साधना कसार के निवास पर काव्य गोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ साहित्यकार आनंद तिवारी पौराणिक की अध्यक्षता एवं आशा मानव के मुख्य आतिथ्य में किया गया। साहित्यकार सरिता तिवारी ने कहा कि -आज मेरी आवाज परेशान कर जाती है, कल मेरी खामोशी सताएगी। अध्यक्षीय आसंदी से काव्य कलश छलकाते हुए साहित्यकार आनंद तिवारी ‘पौराणिक’ ने कहा कि रोटी ने नहीं पूछी, किसी भूखे की जात, व्यसन नहीं की कभी मजहब की बात। बढ़ती उम्र में भी साहित्य साधना में रत आशा मानव ने कहा कि चांद एक रुप है, रुप का प्रतीक है, पूर्ण मद का चंद्र है इंदू, चांद दृश्य रुप है ईश के स्वरुप का। साहित्यकार एस चंद्रसेन ने कहा कि आसमान में चांद चमकता चांदनियां भर आती है। उनसे लेकर कुम्भ, कुम्भ फिर शरद सुधा बरसाती है। बचपन की स्मृतियां व मां के दुलार पर शब्द चित्रित करते हुए डॉ. साधना कसार ने कहा कि कभी डांटना कभी समझाना मुझे बनाना मुझे संवारना क्या जीवन क्या जीवन भर भूल सकूंगी। पत्रकार उत्तरा विदानी चांद को रेखांकित करते हुए कहा कि आज महज तालियों के लिए कोई गीत नहीं गाऊंगी चंद्रमा, सुनना चाहेंगे तो झोपड़ी के विरुद्घ व्यथा सुनाऊंगी चंद्रमा। शरद काव्य गोष्ठी में साहित्यकार टेकराम सेन ‘चमक’ ने चमक बिखेरते हुए शरद के आगमन पर ग्रामीण परिवेश का चित्रण करते हुए कहा कि गोबर लिपा मेरा शरद का आंगन, शरद के आंगन में प्रिया की रंगोली, प्रिया की रंगोली में दस-दस रंग, दस-दस रंगों में कातिक के फूल, फूलों भरा मेरा शरद का आंगन। इस अवसर पर शिक्षाविद् एवं साहित्यप्रेमी केआर चंद्राकर ने कहा कि आस्था की काव्य फुहार समाज के लिए प्रेरणा बने। संचालन डॉ. साधना कसार व आभार अधिवक्ता भरत सिंह कसार ने किया।
