बस्तर के कला व संस्कृति, परम्परा का अद्भुत समागम बस्तर पंडुम , 12 से 3 अप्रैल तक तीन चरणों होगी प्रतियोगिता
दंतेवाड़ा, 11 मार्च 2025। राज्य शासन के निर्णयानुसार जनजातीय बाहुल्य बस्तर संभाग के स्थानीय कला एवं संस्कृति परम्परा लोककला, शिल्प, तीज-त्यौहार, खानपान, बोली-भाषा, रीति-रिवाज, वेशभूषा, आभूषण, वाद्य यंत्र, पारंपरिक नृत्य, गीत-संगीत, नाट्य, व्यंजन पेय पदार्थों के मूल स्वरूप के संरक्षण, संवर्धन एवं कला समूहों के सतत विकास तथा जनजातीय कलाकारी को प्रोत्साहित एवं सम्मानित करने के उद्देश्य से ’’बस्तर पंडुम 2025’’ का जनपद, जिला, संभाग स्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन किया जायेगा।
इस संबंध में ’’बस्तर पंडुम 2025’’के अंतर्गत प्रतियोगिता के लिए बस्तर संभाग के सभी 32 जनपद मुख्यालय में 7 विधाओं पर आधारित प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जायेगा। ग्राम पंचायत स्तर से 7 विधाओं से संबंधित सभी कलाकारों को जनपद स्तरीय प्रतियोगिता में सम्मिलित होने हेतु निःशुल्क प्रवेश होगा। आयोजन का स्तर तीन चरण जनपद, जिला एवं संभाग स्तर में विभाजित होगा। इसके अन्तर्गत प्रथम चरण जनपद स्तर प्रतियोगिता दिनांक 12 से 20 तारीख के अंतर्गत आयोजित कराये जाएगें। 7 विधाओं से एक-एक दल, समूह प्रतिभागी का चयन कर प्रत्येक विधाओं के विजेता दल को प्रोत्साहन राशि 10 हजार रूपये दिए जायेगें। इसी प्रकार द्वितीय चरण जिला स्तरीय प्रतियोगिता दिनांक 21 से 23 के अंतर्गत आयोजित होंगे। और प्रत्येक विधाओं के विजेता दल को प्रोत्साहन राशि 20 हजार दिए जाएगें।
तृतीय चरण संभाग स्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन जिला दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा में प्रस्तावित किया गया है। संभाग स्तरीय आयोजन 1. 2 एवं 3 अप्रैल तक होगा। इस संभाग स्तरीय आयोजन के 49 प्रतिभागी जिला स्तरीय विजेता दलों को राशि रु. 10,000 यात्रा व्यय एवं 7 विधाओं के विजेता 7 दलों को (1) प्रथम पुरस्कार राशि रू 50,000 (2) द्वितीय पुरस्कार राशि रू 30.000 (3) तृतीय पुरस्कार राशि रू. 20.000 तथा शेष प्रतिभागी 28 दलों को रू. 10,000 प्रोत्साहन राशि प्रदान किया जावेगा।
’’बस्तर पंडुम 2025’’ के अन्तर्गत प्रतियोगिताओं की जो विधाएं शामिल की गई है। उनमें जनजातीय नृत्यों के तहत गेड़ी, गौर-माड़िया, ककसार, मांदरी, दण्डामी, एबालतोर, दोरला, पेंडुल, हुलकीपाटा, परब, घोटुलपाटा, कोलांगपाटा, डंडारी, देवकोलाग, पूसकोलांग, कोकरेंग लोक गीत श्रृंखला के तहत त्र जनजातीय गीत-घोटुल पाटा, लिंगोपेन, चैतपरब, रिलो, लेजा, कोटनी, गोपल्ला, जगारगीत, धनकुल, मरमपाटा, हुलकीपाटा (रीति रिवाज, तीज त्यौहार, विवाह पद्धति एवं नामकरण संस्कार आदि) जनजातीय नाट्यश्रेणाी में माओपाटा, भतरा नाट्य जिन्हें लय एवं ताल, संगीत कला, वाद्य यंत्र, वेषभूषा, मौलिकता, लोकधुन, वाद्ययंत्र, पारंपरिकता, अभिनय, विषयवस्तु, पटकथा, संवाद, कथानक के मानकों के आधार पर मूल्याकंन किया जाएगा। इसके अलावा जनजातीय वाद्ययंत्रों का प्रदर्शन के तहत धनकुल, ढोल, चिटकुल, तोडी, अकुम, बावासी, तिरडुड्डी, झाब, मांदर, मृदंग, बिरिया ढोल, सारंगी, गुदुम, मोहरी, सुलुङ, मुडाबाजा, चिकारा शामिल रहेगें। जिन्हें संयोजन, पारंगता, प्रकार, प्राचीनता के आधार पर अंक दिए जाएगें। जनजातीय वेशभूषा एवं आभूषण का प्रदर्शन विधा में लुरकी, करधन, सुतिया, पैरी, बाहूंटा, बिछिया. ऐंठी, बन्धा, फुली, धमेल, नांगमोरी, खोचनी, मुंदरी, सुर्रा, सुता, पटा, पुतरी, द्वार, नकबेसर, जैसे आभूषण में एकरूपता, आकर्षकता, श्रृंगार, पौराणिकता को महत्व दिया जाएगा। जनजातीय शिल्प एवं चित्रकला का प्रदर्शन विधा के अंतर्गत घडवा, माटी कला, काष्ठ, पत्ता, ढोकरा, लौह. प्रस्तर, गोदना, भित्तीचित्र, शिसल, कोड़ी शिल्प. बांस की कंघी, गीकी (चटाई), घास के दानों की माला प्रदर्शन प्रस्तुतियां होगी। और जनजातीय पेय पदार्थ एवं व्यंजन का प्रदर्शन-सल्फी, ताडी, छिंदरस, हंडिया, पेज, कोसमा, मडि़या या मांड, चापड़ा (चींटी की चटनी), अमारी शरबत एवं चटनी के बनाने की विधि स्वाद, प्रकार, प्रस्तुतिकरण, ’’बस्तर पंडुम 2025’’ के मुख्य आकर्षण होगें।