बाहर से अच्छा बनने की कोशिश करते हैं, पर समझदार व्यक्ति ही अंदर के दोषों को घटाता है

महासमुंद। सहजानंदी चातुर्मास 2025 के अंतर्गत जैन संघ ने सोमवार को शांतिनाथ भवन में आत्मशोधन व कर्मविजय तप के तपस्वियों का पारणा एवं अक्षय निधि, विजय कसाय व समवशरण के तपस्वियों के लिए उत्तर पारणा का आयोजन रखा। शांतिनाथ भवन को राजस्थान के रूप में सजाया गया था। संघ के अध्यक्ष राजेश लूनिया के नेतृत्व में प्रवेश द्वार में सभी आगंतुक तपस्वियों का स्वागत किया गया। सभी के हाथों में शगुन की मेहंदी लगाई गई। सभी को कृत्रिम रूप से बने राजस्थान की सैर कराई गई। फिर ससम्मान सभी को ऊपर हाल में बैठाकर पारणा कराया गया। भामाशाह बन कर आए प्रक्षाल चोपड़ा ने सबको ससम्मान विराजित करा प्रभावना प्रदान किया। कार्यक्रम संयोजिका नेहा लूनिया और निधि झाबक ने बताया कि उत्तर पारणा का यह कार्यक्रम महासमुंद में पहली बार आयोजित किया गया है। उन्होंने आगे बताया कि अक्षय निधि आदि तप आगामी सोलह दिन तक अनवरत जारी रहेगी। रक्षा बंधन पर्व को लेकर विवेकसागर ने बताया कैसे अपने बंधन को तोड़कर आत्मा की रक्षा करें स्थानीय वल्लभ भवन में निरंतर जिनवाणी की वर्षा अनवरत जारी है, जहां विवेकसागर महाराज ने कहा कि हम बाहर की सफाई पर जोर देते हैं, बाहर से अच्छा बनने की कोशिश करते हैं, पर समझदार व्यक्ति ही अंदर के दोषों को घटाता है। सबसे बड़ा दोष है हिसाब -किताब करना। कई लोग किसी को की गई मदद गिनाते हैं, अपने सत्कार्य का लेखा-जोखा रखते हैं। हमें लगता है कि संसार में सुख है इसीलिए मृग मरीचिका की भाँति दौड़ लगाते हैं, पर शांति नसीब नहीं होती। अगर इन सबसे बचना है तो रोज सुबह जल्दी उठें, तामसिक भोजन का त्याग करें, संवेदनशीलता अपनाएं। क्योंकि संवेदनशील व्यक्ति में ही धर्म उपजता है। जैसे माँ की संवेदना बच्चे के प्रति होती है, वैसे ही परमात्मा के प्रति संवेदना लाएं। गंभीर व्यक्ति बात को पचाते हैं, और जो चंचल होते हैं वे सबको बताते फिरते हैं। छोटी-छोटी संवेदनाओं को समझें। अगर पंचेन्द्रीय के प्रति संवेदना नहीं है तो इसका मतलब आपके अंदर धर्म नहीं है। दीन दुखियों की मदद करें, उन्हें अकेला ना छोड़ें। शांतिनाथ भगवान, जिनके नाम स्वरूप धारण करने से अथवा स्मरण करने से व्यक्ति का जीवन बदल जाता है। साधु का ड्रेस नहीं बदलता और श्रावक का एड्रेस नहीं बदलता। उन लोगों से मित्रता रखें जो आपकी आत्मा के उत्थान की बातें करें। तपस्वी को देखकर हमें अहोभाव जगाना चाहिए। शासनरत्नसागर के अवतरण दिवस पर उन्होंने कहा कि आत्मा का कभी भी जन्म नहीं होता। पर्व दो तरह के होते हैं लौकिक और लोकोत्तर। जिनशासन में बताए गए पर्व लोकोत्तर हैं, और जो नहीं बताए गए हैं वे लौकिक हैं। लौकिक पर्व में रक्षाबंधन भाई को अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है। आज परमात्मा को राखी बांधें, ताकि अपनी आत्मा के उत्थान के लिए जो माँगो वो आपको मिलेगा। आज उस परम व्यक्ति से संबंध जोड़ें जन्मों जन्म तक, क्योंकि रिश्ता निभाने वाले सिर्फ परमात्मा हैं। रक्षाबंधन लौकिक होकर भी लोकोत्तर है । ये पर्व है आस्था और विश्वास का। बहन अपने भाई को राखी के रूप में पवित्रता का रिश्ता बांधती है, क्योंकि ये सुरक्षा का चक्र है शक्ति का कवच है। पर आज हम इच्छाओं की जेल में बंद हैं। आज अनादिकाल से हम काया से बंधे हुए हैं। आत्मा सर्वभूतेषु नियम मंथन में अपनी रक्षा का नियम लें। अपनी बहन की रक्षा का नियम लें। इस अवसर पर रविवार को राजुल की संवेदना नेमी के नाम कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसे स्थानीय श्राविका श्रीमती ललिता बरड़िया ने बड़े भावुक अंदाज में प्रस्तुत किया। उन्होंने नेमिनाथ भगवान के साथ किस प्रकार राजुल ने भी संयम जीवन अंगीकार कर लिया और राजुल के क्या भाव पैदा हुए उसका सजीव वर्णन बड़ी खूबसूरती से करके सबका मन मोह लिया। यह जानकारी संघ के सचिव सीए रितेश गोलछा ने दी ।