मोक्ष तक पहुंचने के लिए जीवन में गुणों का होना अत्यंत आवश्यक : मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी

रायपुर। श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। शुक्रवार को तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने कहा कि चार गति रूप संसार में भटक रहे जीव के लिए जिन शासन की प्राप्ति अत्यंत पुण्य के उदय से होती है। जिन शासन की प्राप्ति के बाद जीव का कर्तव्य है कि वह धर्म के अंदर पुरुषार्थ करके अपनी आत्मा को मोक्ष में पहुंचाएं और मोक्ष तक पहुंचने के लिए जीवन में गुणों का होना अत्यंत आवश्यक है। इस तरह के 21 गुणों का वर्णन शास्त्रकार भगवंतो ने किया है, उन गुणों के अंतर्गत पापभीरूता नाम के गुण की बात चल रही है।
मुनिश्री ने कहा कि जीव ने सामायिक, प्रतिक्रमण, पूजा, दान, तप रूप प्रवृत्ति धर्म तो बहुत किए हैं परंतु जब तक जीवन में निवृत्ति रूप धर्म (त्याग) को नहीं अपनाएगा तब तक उसका कल्याण होना मुश्किल है। अवसर आने पर तपस्या हो जाती है परंतु रात्रि भोजन त्याग,अभक्ष्य त्याग आदि करना उसे नहीं रुचता है, करोड़ों रुपए का वह दान कर सकता है, करता है लेकिन अनीति का त्याग, चोरी का त्याग करना वह मुश्किल समझता है। दान करना वह प्रवृत्ति रूप धर्म है, चोरी नहीं करना ,अनीति नहीं करना वह निवृत्ति रूप धर्म है और जब तक वह निवृत्ति रूप धर्म जीवन में नहीं लाएगा तब तक उसका जीवन दोषों से भरा रहेगा।
मुनिश्री ने कहा कि जैन शास्त्रों में 14 गुणस्थानको की जो व्यवस्था बताई गई है उसमें ऊपर ऊपर के गुणस्थानको को प्राप्त करने के लिए जीवन में दोषों का त्याग होना ही चाहिए। भारत की भूमि यह आर्य संस्कृति की भूमि है। यहां पर न्यायालय की एक व्यवस्था है किसी अपराधी को मृत्युदंड देने के बाद न्यायाधीश अपनी उस कलाम को तोड़ देते हैं क्योंकि जिस कलम से किसी के लिए मृत्यु का फरमान लिखा गया हो उस कलाम का उपयोग अब किसी दूसरे कार्य के लिए योग्य नहीं है। यह घटना आर्य संस्कृति की तस्वीर बताती है।