विश्व भर में एक अरब से अधिक युवा असुरक्षित तकनीकों का उपयोग करने से सुनने की कमी के जोखिम में हैं: डब्ल्यूएचओ

नई दिल्ली 19 अक्टूबर 2024। नई दिल्ली में आयोजित आईटीयू-डब्ल्यूटीएसए 2024 में सुरक्षित श्रवण पर आईटीयू-डब्ल्यूएचओ की संयुक्त कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला में सुनने की हानि के तत्काल वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और सुनने के असुरक्षित साधनों से उत्पन्न खतरों पर चर्चा की गई। आंकड़ों के अनुसार असुरक्षित रुप से सुनने के कारण एक बिलियन से अधिक युवा बहरेपन के जोखिम के संकट में हैं। इस कार्यशाला में सुनने के लिए सुरक्षित तकनीकों के लिए वैश्विक मानदंड बनाने के लिए सामूहिक कार्रवाई के महत्व को रेखांकित किया गया। इस बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के निपटने के लिए, डब्ल्यूएचओ ने सुनने की क्षमता को सुरक्षित रखने के माध्यम से सुनने की हानि को रोकने के उद्देश्य से 2015 में मेक लिसनिंग सेफ पहल शुरू की।
उद्घाटन सत्र में भारत के उपभोक्ता मामले विभाग की सचिव निधि खरे, भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन कार्यालय के उप प्रमुख डॉ. पी. पेडेन और भारत के संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग के उप महानिदेशक (मीडिया) एवं प्रवक्ता हेमेंद्र कुमार शर्मा ने भाग लिया। प्रसिद्ध संगीतकार रिकी केज ने सत्र का संचालन किया।
कार्यशाला में बोलते हुए, उपभोक्ता मामलों के विभाग की सचिव सुश्री निधि खरे ने कहा कि नीति निर्माताओं और नियामकों के लिए न केवल निर्माताओं के लिए बल्कि उपयोगकर्ताओं और सेवाओं के लिए भी मानक विकसित करना महत्वपूर्ण है। कैलोरी सेवन और कितने कदम चलें हैं, जैसे अन्य स्वास्थ्य मापदंडों को ट्रैक करने की तर्ज पर ध्वनि जोखिम को ट्रैक करने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण होना चाहिए। उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक प्रथाओं पर प्रकाश डाला जो इस उद्देश्य से जुड़ी हुई हैं और कहा कि हमारी संस्कृति में, एक त्योहार ‘मौनी अमावस्या’ है, जिसमें व्यक्ति को चुप रहना और उपवास करना होता है। शायद, मौन की ध्वनि का आनंद लेना है। मुझे लगता है कि यह बेहद उपचारात्मक है और हमें यह महसूस करना चाहिए कि साथ मिलकर, हम न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बदलाव ला सकते हैं।
भारत में डब्ल्यूएचओ के कार्यालय की उप प्रमुख पी. पेडेन ने कहा कि कम सुनाई देने के व्यापक परिणाम लाखों लोगों को संचार चुनौतियों, जीवन की घटती गुणवत्ता और पेशेवर विकास/शिक्षा पर संभावित प्रभाव का सामना करने में बदल जाते हैं। इसके अलावा, बच्चों में शोर के होने वाली सुनने की कमी भाषा अधिग्रहण को बाधित कर सकती है, जिससे सीखने में अक्षमता और चिंता बढ़ सकती है। अनुपचारित सुनने कि कमी से अलगाव, अवसाद और संज्ञानात्मक गिरावट हो सकती है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ये एकं अच्छी खबर है कि सुरक्षित सुनने की आदतों को अपनाकर शोर से होने वाली सुनने की हानि को रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि सुरक्षित सुनने वाले उपकरणों और प्रणालियों के लिए वैश्विक आईटीयू मानक व्यक्तिगत ऑडियो उपकरणों में सुविधाओं को शामिल करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, जैसे कि ध्वनिक समरूपता जो एक निश्चित अवधि के लिए ध्वनि स्तर की जांच करता है। ऐसी सुविधाएँ जो उपयोगकर्ताओं को उनके साप्ताहिक ध्वनि स्तर के 100 प्रतिशत तक पहुँचने पर चेतावनी देती हैं।
उन्होंने अंत में कहा कि कि “डब्ल्यूएचओ शोध के माध्यम से सुरक्षित सुनने की आवश्यकता को बढ़ावा देने, साक्ष्य-आधारित मार्गदर्शन का प्रसार और सुरक्षित सुनने के लिए हितधारकों के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि सुनने की क्षमता में कमी अपरिवर्तनीय है लेकिन इसे रोका जा सकता है।” हितधारकों को संबोधित करते हुए दूरसंचार विभाग के उप महानिदेशक और प्रवक्ता हेमेंद्र के शर्मा ने कहा कि दुनिया की 5 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी को सुनने की अक्षमता के कारण पुनर्वास की ज़रूरत है, जिसमें 34 मिलियन बच्चे शामिल हैं और इसके लिए सही विनियमन और जागरूकता जैसे दोतरफा दृष्टिकोण की ज़रूरत है। उन्होंने दूरसंचार विभाग के संचार मित्रों , छात्र स्वयंसेवकों के बारे में बताया, जो विभाग की नागरिक केंद्रित सेवाओं के बारे में जागरूकता पैदा कर रहे हैं। कार्यशाला में देश भर से 30 ऐसे संचार मित्र भाग ले रहे थे। श्री हेमेंद्र के. शर्मा ने उनसे नागरिकों तक सुरक्षित सुनने की प्रथाओं का संदेश पहुँचाने का आग्रह किया।
इस विषय पर आईटीयू और डब्ल्यूएचओ द्वारा विस्तृत प्रस्तुति दी गई। आईटीयू-टी के काउंसलर सिमाओ कैम्पोस ने श्रवण स्वास्थ्य सहित स्वास्थ्य क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए मानकीकरण की प्रासंगिकता के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि मानकों और विनियमन के कार्यान्वयन के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन को कैसे प्रेरित किया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ की कान और श्रवण देखभाल की तकनीकी प्रमुख डॉ. शेली चड्ढा ने सुरक्षित सुनने के लिए वैश्विक मानकों और सुनने को सुरक्षित बनाने के लिए डब्ल्यूएचओ के अन्य प्रयासों के बारे में बात की। उन्होंने सुरक्षित सुनने पर डब्ल्यूएचओ के दर्शन इसके मानक किस विषय में है और इसे कैसे लागू किया जा सकता है, इस बारे में जानकारी दी।
सुरक्षित श्रवण मानक: प्रेरणाएं और चुनौतियां’ को लागू करने पर एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई, जिसमें मानकीकरण संगठनों, निजी क्षेत्र की संस्थाओं, सरकारों और उपयोगकर्ताओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। पैनलिस्ट में श्री मासाहितो कावामोरी, कीओ विश्वविद्यालय (जापान), श्री कार्ल ब्रूक्स, सोनी (यूके), डॉ कपिल सिक्का, एम्स दिल्ली (भारत) शामिल थे। पैनल ने संभावित नुकसान और अनुपालन के समाधान और सुरक्षित श्रवण प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कार्रवाई सहित विभिन्न पहलुओं की खोज की। इन मानकों को लागू करने पर विशेष ध्यान दिया गया, जिसमें अनूठी चुनौतियों और तर्कसंगतताओं पर प्रकाश डाला गया। चर्चा में उपयोगकर्ता के परिप्रेक्ष्य में भी गहराई से चर्चा हुई, जिसमें सुरक्षित सुनने के लाभ, चुनौतियों और समग्र प्रभाव पर जोर दिया गया। महिमा शर्मा और संचार मित्रा, सुश्री एसजे वर्षा ने अपनी अंतर्दृष्टि साझा की।
सत्र का समापन निरंतर वैश्विक सहयोग के आह्वान के साथ हुआ, जिसमें इस बात पर बल दिया गया कि सुरक्षित श्रवण मानकों को अपनाने के लिए सरकारों, उद्योग और विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा आईटीयू जैसे संगठनों के बीच समन्वित प्रयास आवश्यक हैं।
ये चर्चाएँ और विकास नई दिल्ली में चल रहे डब्ल्यूटीएसए 24 और आईएमसी 24 से इतर कार्यक्रम का हिस्सा हैं। यह कार्यक्रम भारत की डिजिटल यात्रा में एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है, जो उन्नत संचार प्रौद्योगिकियों में वैश्विक नेता बनने के लिए देश की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।