पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में दो दिवसीय बैगानी भाषा सम्मेलन का शुभारम्भ


माँ, मातृभूमि औऱ मातृभाषा सदा वंदनीय – प्रो. आलोक चक्रवाल
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली एवं पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय बैगानी भाषा सम्मेलन कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ l इसमें मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल, कुलगुरु गुरुघासीदास विश्वविद्यालय उपस्थित थे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल, कुलपति, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर उपस्थित रहे l साहित्य अकादेमी के सचिव श्री के.श्रीनिवाराव ने कहा कि “साहित्य अकादेमी का उद्देश्य रहा है की विलुप्त हो रही बोलियों, भाषाओं तथा साहित्य को संरक्षित किया जाए औऱ साहित्य को सहेजा जाए इस दिशा में साहित्य अकादमी सफल भी हुई है,लेकिन भाषा एवं संस्कृति को बचाये रखना औऱ अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करने की जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक की है l “
अतिथि उद्बोधन में पद्मश्री श्री अर्जुन सिंह धुर्वे प्रख्यात बैगानी विशेषज्ञ ने कहा ” जब बैगानी साहित्य मौखिक, वाचीक परंपरा पर आधारित था,लेकिन खुशी की बात है कि वर्तमान में कुछ युवा बैगानी साहित्यकार मार्गदर्शन लेते हुए इस साधना, लेखन आदि में निरंतर संलग्न हैं l “
लोक साहित्यविद महेंद्र कुमार ने बैगानी लोक साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “आज भी बैगानी साहित्य की विषय वस्तु प्रकृति चित्रण पर ही आधारित है l जिसमें अपनी संस्कृति की झलक मिलती है,जो इसे अपने आप में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है l “
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित कुलपति गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर अलोक कुमार चक्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि माता ,मातृभूमि और मातृभाषा को कभी भी नहीं भूलना चाहिए l इनका स्थान जीवन में सर्वोच्च है l भाषा हमें हमारे संस्कृति व संस्कारों से जोड़ती है जिससे हमारे अंदर आत्मसम्मान व संस्कार को एक नई दिशा प्राप्त होती है l प्रत्येक मानव के जीवन में भाषा व संस्कृति का अपना एक विशिष्ट महत्व है जो की आदिम जातियों की इस भाषा में भी देखने को मिलता है l
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित सच्चिदानंद शुक्ल कुलपति पं. रवि शंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ने कहा कि ” वर्तमान में बैगा जनजाति ही प्रकृति पूजक है जो अपने समृद्ध विरासत को आज भी सहेज कर संस्कृति के संरक्षण में लगा हुआ है l इस जनजाति के पास बहुमूल्य औषधि ज्ञान है जिसके कारण वह सभ्यता के विकास से दूर रहकर के भी अपने स्वास्थ्य को श्रेष्ठ बनाए रखे हुए हैं l”
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं माधव कौशिक अध्यक्ष साहित्य अकादेमी नई दिल्ली ने कहा कि “संपूर्ण विश्व हमारे भारतीय संस्कृति एवं यहां के पुरातन सभ्यताओं के बारे में जानना चाहती है परंतु यहां के लेखकों द्वारा इस क्षेत्र में विशेष कार्य नहीं हो पाया है जिसके कारण हमारे प्राचीन संस्कृतियों के बारे में संपूर्ण विश्व अनभिज्ञ है l इस क्षेत्र में और प्रयास करने की जरूरत है l”
धन्यवाद ज्ञापन डॉ.शैलेंद्र कुमार पटेल कुलसचिव पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ने समस्त अतिथियों का अभिवादन किया एवं इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अपना बहुमूल्य समय देने के लिए सबके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की l
वहीं सम्मेलन के प्रथम सत्र में श्री धनीराम कडमिया ने बेगानी भाषा के इतिहास के बारे में बताते हुए इस जनजाति में प्रयुक्त होने वाले ऐतिहासिक शब्दों पर प्रकाश डाला l तो
द्वितीय वक्ता के रूप में श्री चैन सिंह सुरखिया ने बैगानी लिपि और व्याकरण के बारे में प्रकाश डालते हुए बैगानी भाषा छत्तीसगढ़ी भाषा से निकट का संबंध बनाया हुआ है परंतु कुछ शब्दों में खिंचाव के साथ यह अपने अलग स्वरूप को प्रस्तुत करता है l
तृतीय वक्ता के रूप में श्री अमरलाल बरिया बेगानी भाषा और उसकी बोलियों के बारे में बताते हुए महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए इसकी विशेषता को रेखांकित किया l प्रथम सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में अर्जुन सिंह धुर्वे जी ने बैगा जनजाति की समृद्ध साहित्यिक शब्दावली एवं उनकी विशेषताओं के महत्व को रेखांकित करते हुए सभी वक्ताओं आभार व्यक्त किया l इस कार्यक्रम में कला संकाय के अध्यक्ष प्रो. रविन्द्र ब्रम्हे एवं साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला की अध्यक्ष प्रोफेसर शैल शर्मा, डॉ.गिरजा शंकर गौतम एवं डॉ. स्मिता शर्मा प्रो. बी एल सोनेकर, डॉ. सुनील कुमेटी आदि प्राध्यापकगण तथा देश के विविध भागों से आए हुए अतिथि गण , शोधार्थी एवं विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे l उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ.स्मिता शर्मा एवं प्रथम सत्र के कार्यक्रम का संचालन डॉ. विभाषा मिश्र के द्वारा किया गया l